केन्द्र सरकार ने किया कर्मचारियों को पुरानी पेंशन में कवर करने का फैसला

नई दिल्ली. केंद्र की मोदी सरकार ने पुरानी पेंशन प्रणाली की मांग करने वाले लाखों केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है.केन्द्र सरकार ने अपने उन कर्मचारियों को नैशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) के बदले पुरानी पेंशन प्रणाली केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम,1972 में कवर करने का फैसला किया है, जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी,2004 से पहले हुई है, लेकिन उनकी जॉइनिंग 1 जनवरी,2004 को या उसके बाद हुई है.


एनपीएस छोड़कर पुरानी पेंशन प्रणाली अपनाने की अंतिम तिथि 31 मई, 2020 है, अगर इस अवधि के भीतर कोई कर्मचारी ऐसा नहीं कर पाता है, तब वह एनपीएस के तहत ही कवर रहेगा. एनपीएस में पेंशन की राशि रिटायरमेंट के वक्त पेंशन खाते में जमा हुई कुल रकम के आधार पर तय होती है. वहीं,पुरानी पेंशन प्रणाली में पेंशन की राशि अंतिम तनख्वाह या 10 महीने की तनख्वाह का औसत,इनमें से जो ज्यादा हो उसके आधार पर तय होती है. इसके अलावा, महंगाई भत्ता भी दिया जाता है. डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर्स वेलफेयर ने कहा है कि जिन केंद्रीय कर्मचारियों का सेलेक्शन 1 जनवरी, 2004 से पहले हुआ, लेकिन उनकी जॉइनिंग 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद हुई है, वे एनपीएस की जगह सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 को चुन सकते हैं. सरकार ने बताया कि पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने उन केंद्रीय कर्मचारियों की पुरानी मांग को पूरा करने का फैसला लिया है, जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी, 2004 से पहले हुई, लेकिन विभिन्न कारणों से उनकी जॉइनिंग 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद हुई.सरकार ने यह भी साफ कर दिया हैं कि पेंशन की पुरानी प्रणाली में स्विच करने की अंतिम तारीख 31 मई,2020 है और इस डेडलाइन के भीतर जो ऐसा नहीं कर पाते हैं, वे एनपीएस में ही कवर रहने वाले है. केंद्र सरकार ने अपने इस आदेश से उन केंद्रीय कर्मचारियों की काफी पुरानी शिकायत दूर कर दी है, जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी ( कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम में कवर करने के लिए यह कट-ऑफ डेट थी) को या उससे पहले हुई थी, लेकिन प्रशासनिक कारणों से उनकी जॉइनिंग में देरी हुई और इसमें उन कर्मचारियों की कोई गलती नहीं थी. केंद्र के इस आदेश से भारी तादाद में केंद्रीय कर्मचारियों को राहत मिलने की उम्मीद है, जिनमें से कुछ ने खुद को पुरानी पेंशन स्कीम में कवर करने के लिए न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है. इस फैसले से इस मुद्दे को लेकर मुकदमों की संख्या में भी कमी आएगी.